Monday, November 7, 2011

बंधन

क्या है जो बांधता है
सोच के भी पास जाती हूँ
पिछली चुभन भरी दास्ताँ भूल जाती हूँ
ये सूत्र क्यों इतना गहराया है
कि तार तार ,बेजार होने पर भी ख्याल है
परंपरा का बंधन है, मर्यादा की सांकल है
उन फेरों की लगन इतनी भारी है
कि कतरा कतरा गलने पर भी ढोते हैं..
सैलाब यूँ उमड़ कर अक्षि से बहा जा रहा है
फिर भी क्या है जो बांधता है ।

कहीं किलकारियों की मोह है
तो कहीं अपने ही सिन्दूर की चिंता
कितनी मजबूर हूँ कि न चाह के भी बिन्धती हूँ
संबंधों की बेदी पर हर पल बलि चढ़ती हूँ
फिर भी कहते हैं कडवी हूँ. मुह्न्जोर हूँ
कहाँ जाऊं , किसे सुनाऊँ दुखड़ा अपना..
जहाँ से विदा हुई , वहां सुना " अर्थी ही निकले"
ये टीस अब खाए जा रही है
गुनाहों कि गठरी मैं, क्यों जन्मी
अपने ही होने को लेकर विलपती हूँ
इतना सोचती हूँ और अगली सुबह से
पुनः चाक पे चढ़ने को तैयार होती हूँ..

मैं न सही पर आगे आने वालों को न भोगने दूँगी
प्रार्थना में, दुआ में, मजार पे, सुन ले खुदा
अब तो तू देगा ही आसमान क्योंकि
शक्ति ने ठान ली है , 
वो जोश है. जूनून है , जज्बा है
उसी का रंग हर तरफ ...
अपनी तस्वीर बनाने के लिए बढ़ाती हूँ.....

खो गए हैं रिश्ते नाते

बिक जाते हैं रिश्ते नाते
दुनियावी मोल में
तौलते हैं, परखते हैं तराजू पे
जाने क्यों वो अनमोल को
माप देना चाहते हैं
क्या ये साँसों का बंधन है
भावनाओं का ज्वार है जो
मूल्य के आधार पे गढ़ता है
बंधन, तर्क की आँखों से
तलाशता है आसरा , तब चढाते हैं
परवान रिश्ते
नहीं तो घोंट देता है, नोच देता है
आसरे को
क्योंकि उसे वो मान न मिला वो कर्ण न मिला
तब वो आरजू वो आशा की छावं न थी
बिक जाते हैं क्यों रिश्ते
यंत्रीकृत माहौल में
खो देते हैं पहचान
मिटा देते हैं आस विश्वास और नेह भी
खो गए हैं रिश्ते नाते
दुनियावी मोल में...

इतने अरसे बाद.....

 
इतने अरसे बाद , कोई ऐसा मिला
जिसे अपना कह सकूं
ऐसा जैसे.....
दरख्तों पे चांदनी आई
पतझड़ से मधुमॉस आया
निराशा से आशा आई
जीवन में मेरे अभिलाषा आई
प्रसुप्त मन कलरवित हो उठा
ऐसा था उसका रूप
जैसे भीगा सावन
जैसे महकता पवन
जैसे उड़ते विहग
जैसे चंदा की चांदनी
जैसे चटक को स्वाति
मानो चकवे को चकवी
मानो सरिता का उछाल
मानो सुमित की साँस
जैसे सूरज की निधि
मेरे लिए वो बन रहा आधार
मेरी अपनी अनुभूति
मेरा सबल पक्ष
मेरी प्रेरक शक्ति
इतने अरसे बाद, मिला मुझे
मेरे कर्तव्य सूत्र का त्राण
मेरा जीवन सार
इतने अरसे बाद.....

Saturday, October 1, 2011

जाने क्युं




जाने क्युं वो साँसों की डोर टूटने नहीं देता ,
बस दो कदम और चलने का वास्ता देकर मुझे रुकने नहीं देता ,

बात कहता है वो मुझसे हँस हँस कर जी लेने की ,
अजीब शख्स है मुझे चैन से रोने नहीं देता ,


आज हौसला देता है मुझे चाँद सितारों को छू लेने का ,
वो प्यारा सा चेहरा मुझे टूटकर बिखरने नहीं देता ,

शायद जानता है वो भी इन आँखों में आंसुओं का सैलाब है
जाने क्युं फिर भी वो इन आंसुओं को गिरने नहीं देता ,


मुझसे कहता है "मैं तो मर जाऊंगा तुम्हारे बिना "
मैं जिंदा हूँ अब तक की वो मुझे मरने नहीं देता .

Sunday, September 25, 2011

लड़की



लड़की जीती है एक खामोश जिंदगी ,
पैरों तले रौंदती है सपनों को ,
सोचती है , बुनती है
पर ,
खामोश रहती है...........

क्यों रौंदा सपनों को,
किसी ने कहा,
कांच सरीखा नाजुक जीवन ,
दरक जाएगा ,
किसी ने कहा ,
पढेगी तो
पंख लगा उड़ जायेगी ,
कहते....... 
चूल्हा चौका माँ बहन बेटी 
और न जाने कितनी उपमाएं ,
सुनती है
और उलझती ही जाती है
कहाँ हूँ मैं ?
क्या मैं " Save Girl Child" हूँ ?
सच है कि
लड़की सिर्फ संजोई ही जाती है
शीर्ष पे  कहीं भी जाए
पर ये ख़ामोशी भरी उलझन
नम आँखें और मुस्कुराता चेहरा
उसका दामन नहीं छोडती
कुछ भी कर ले
फिर भी कहीं न कहीं
किसी न किसी
तराजू में उसे अधूरा ही कहते हैं
कब तक जीएगी ऐसे ?
आखिर कब तक ?

कभी चले थे


कभी चले थे हम साथ-साथ
थामें रहते थे एक-दूसरे का हाथ

एक दूसरे के दिल थे इतने पास
कभी अलग होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
वक्त गुज़रते-गु्ज़रते दूर होते गए
हम पाले रहे याद उनकी
उनके बिना लम्हें खालीपन के साथ

यूँ ही गुजरते रहे
कभी दिल भी इतनी दूर होंगे
यह हमने सोचा ही नहीं था
उनकी याद में हमें दिल में
चिराग उम्मीद के जगाये रखे
जब भी उनकी याद आयी
अधरों पर मुस्कान उभर आयी
हम अपने अँधेरों में भी
उनसे रोशनी उधार माँगें
यह हमने सोचा ही नहीं था
जो एक बार उनके
घर के बाहर रोशनी देखी
उस दिन कदम खिंच गए
वह अपनी खुशी में
वह हमें भूल जायेंगे
यह हमने कभी सोचा ही नहीं था
हमें देखकर भी उनके चेहरे पर
मुस्कान नहीं आयी
आखें थी उनकी पथराई
हम खड़े थे स्तब्ध
उनके मेहमानों की फेरहिस्त में
हमारा नाम नहीं था
पास थे हम, पर दूर रहा उनका हाथ

कभी चले थे हम साथ-साथ
थामें रहते थे एक-दूसरे का हाथ

चिराग


चले थे राह में तनहा..........
कि कही कभी मेरा आशियाँ मिलेगा ........
पल -पल बुना था सपना कि , कोई ,कहीं , मेरे इंतजार में होगा
राह चली उसके साये के साथ ..............
कि उसे ये एहसास न हो कि , वो एक क्षण के लिए भी अकेला है ...............


न उसे ये महसूस होता कि ..............
ये पलकें क्यों नम हैं
ये आँखें क्यों भरी हैं ..........
ये आवाज क्यों संजीदा हैं ............


जली रोटी का न दर्द जाना था ??????
अधपके चावल का न मर्म जाना था
रची हथेली का न ख्वाब जाना था ???????
साजो -सिंगर का न अरमान जाना था ,,,,,
फिर भी तकिये गीले कर -कर काटी है ,,,,,,,,,,,,,जिन्दगी
उसके रुख के इंतजार के लिए ..................

जानते हैं , ......................................

खुद जलके भी चिराग रौशनी ............
क्यों देता है ?????????????

क्योंकि उसे प्यार है .................................
उजाले से आई ,चेहरे की हर खुशी से .............................
क्योकि जब मन जुड़ जाता है तो बस इंतजार ही एक आस राह जाती है ...........................

जिन्दगी


जिन्दगी ने एक रोज पूछा
क्या हूँ मैं ???????????????
जानते हो ........

थोड़ा -थोड़ा
मैं बताती हूँ

हंसी ,खुशी ,गम ,
बादल ,बिजली ,पानी
सृजन ,विकास ,संहार
अमराई की गूंज ....
कोयल की कूक ..........
भोर का खट्टापन .......
सावन की बारिश
मेहँदी की लाली ..........
चूड़ी की खनक
पायल की झनक ........
आँखों का इंतजार ................
गम में भी मुस्कुराने का नाम जिन्दगी
सच कहूँ तो .................
अपने मंजर की हकीकत
चाँद की चांदनी ..........
रिश्तों का एहसास .......
किसी का बनने की चाहत
किसीका ख्वाब
पल -पल जीने का नाम

जिन्दगी
उदास चेहरे में रंगत लाने का नाम
जिन्दगी
बिछड़ के भी पाने का नाम
जिन्दगी
अनमोल तोहफा प्रेम
को जीने का नाम
-रचने -बसने पगने का नाम जिन्दगी
मेरी नजर में ये है ज़िन्दगी

ख़ामोशी


ख़ामोशी वो है जो न शब्दों में बयां हो ...................
वो नजर की हया है ............
दिल में छुपा डर है ...........
चाह के भी न कहने की सजा है ...................
कहीं दर्द है ..............
तो कहीं आंसू .............
ये ख़ामोशी हमारी नहीं
वो जो हर रोज न चाह के भी ........
मजबूर है ..............
अपना सब कुछ लुटाने को
फिर भी तनहा है .................
कि ???????????????
काश कोई तो ,,,,,,,,,
कोई तो
हो
जो
मुझे समझे ..............
क्या मैं केवल ..............
अंकशायिनी हूँ ..................
वो पीड़ा की गठरी बनी .................
राह तकती है
मूक हो कर ......
निस्तब्ध नेत्रों की

ये ख़ामोशी
चित्कारती है ..........
कभी तो समझो हम बेजुबानों का दर्द
....................

दर्द भरी सीवन



 

 दरख्तें भी पिघल जाती हैं,
मोहब्बत ऐसी खानगी है |
ये कौन सी मिटटी है ,
जो नम भी नहीं होती |


हर जंजीर की कसावट ,
अपनी वफ़ा की गुजर सुनती है |
हम ये सोच के तनहा हैं ,
कि कोई कड़ी तो मेरी भी होगी न |


पैरों के महावर किस्से कई सुनते हैं ,
काश कि कोई किस्सा मेरी नज्मों में भी होता |

चुभन भरे अंगों पर ,
मरहम के पैबंद लगाया न करो |
ये वो मवाद है,
जो पैबंद भी जख्म बन जाए |


हर दिन आस में इसी गुजरता है ,
कि कल की किरण मेरी होगी |
पर हर शाम दिन के
पिघलने की दास्ताँ सुनाती है |


सिवाए दर्द के मैंने उसे कुछ न दिया ,
वो सोचता है ......
पर ऐ जाने बत्तूर !
मैंने तो जब से जाना तुझे,
हर अक्स और ख्वाब को तुझे में ही समेट दिया |


वो आये पहलू में कि दामन खिल उठा ,
पर किस्सा वो उठा कि तह्बन भी नम हो उठा |

ए धरा क्यों ?


सिद्दत से करेंगे उस लम्हे का इंतजार

जब भरी आँखों से पढ़ी जाएगी
नब्जों की हर तस्वीर
पहली नजर जब
भरे बादलों की चुभन पहचानेगी
उस तड़प का एहसास की क्या होता है इंतजार

जब वो .........
मेह बन घुटा है
क्यों कड़कता .....
क्यों चमकती है बिजली ........
ठिठुरते हैं लोग
डरती हैं कलियाँ
पर वो आज खुश है कि
अब वो मिलेगा अपनी सांसो से
जिसके लिए वो इतने दिन
निस्तब्ध रहता है
अपलक निहारता है
उसे निर्निमेष नेत्रों से
सिर्फ एक रंगे भाव से
उसके हर उतर -चढाव को देखता है
छ ऋतुओं कि रौनक देखता है
बस राह में
कि अबकी बारिश में
मिलूँगा तुझसे - बुँदे बन कर
ए धरा क्यों ? तू इतनी दूर है
हम क्षितिज के किनारों पे मिलने का भरम
लोगों को देते हैं क्यों ??????????

रिश्ते




















रिश्ते नब्ज हैं !!!!!!!!!!

उठते एहसास के
चलते नज्म के
पल -पल जीते जज्बात के
आँखों के दर्द के
खुशी के एहसास के
पलकों के साये हों या ----
पनपते अरमान की
हर चाहत ........

उनसे अरमान जुड़े हैं .......
संबंधों की कड़ी
बनाने का मीठा -
जज्बा है
जिन्दगी को नायाब बनाने और
सबको पिरोने का सूत्र है
माँ का सदियों से सजोया घरोंदा है
तो पिता की अनकही ख्वाहिश
लम्हें -लम्हें की
बुनी चादर है

वो साथ है तो
राह बन जाती
मंजिल पास होती है 

इस भरी भीड़ में

साया हैं रिश्ते
बिना बोले
पहचानने की कवायद है
रिश्ते
रब का बनाया अनमोल तोहफा है
रिश्ते
भावना की लड़ी
संबंधो की पूजा है
रिश्ते
गढ़ता है
सोचता है इन्सान
रिश्ते
पर बनाता है
ऊपर वाला
चलते है हम -सब
संजोते हैं सिद्दत से

बढती दूरियां
आज जो है (समाज में बढती हननता)
वो क्यों ???????????
कि........
हम भूल जाते हैं .......
रिश्ते

इसलिए
जब तक है साँस
जियो हर रिश्ते को ........
तभी बनती है ,
पूरी होती है ......
एक मुकम्मल आशियां की
सच्ची तस्वीर
मेरी नजर में
ये है
रिश्ते !!!!!!!!!!!!!!