क्या बात कहूं उन आँखों के
जिन आँखों पे मैं मरती हूँ
वो आँखें झील सी आँखें हैं
जिनमें डूब के रोज़ उबरती हूँ
मुझे देखने के लिए उठते हैं
मिलते ही नजर वो झुकते हैं
सारे जहाँ में ऐसी आँखें नहीं'
जिन आँखों पे मैं मरती हूँ
इन आँखों में कोई आंसू न आये कोई
कभी कोई गम न पास आये कोई
सदा मुस्कुराते रहे ये आँखें
हर दम ये दुआ मैं करती हूँ
क्या बात कहूं उन आँखों के
जिन आँखों पे मैं मरती हूँ