Thursday, January 30, 2014

विवाह


बहती हुई जिंदगी की लहरों में
मन को बांधे
बूंद बूंद सी रस्में कसमें
कच्चे धागे से
प्रीत के बंधन ये कितने पक्के
मिलन के ये यादगार पल प्रियवर
जब घूँघट के पट खोल इंतज़ार था सदी भर का
खुद को खोकर एक-दूजे में
बनते हैं नवयुगल जीवन रथ के दो पहिये
बस जाते हैं नयनों में अब दोनों के एक ही स्वप्न
है नींद नहीं तुम ही तुम मेरे ख्वाबों में
पूजा की थाली में
रोली अक्षत कुमकुम हो
तृषित दिया की
भूख प्यास औ घुटन
 मिटाते तुम
साँसों में बनकर गंध समाते तुम
यही है विवाह

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