सीने में उफनते सैलाब को
मंजर दे दिया
दहकते ख्वाबों को मैंने
आशियाँ दे दिया
जो बुझ चुके थे,
न जलने के लिए कभी
उनमें आशा की लौ लगा ही दी तूने
परचम को नया तसव्वुर
व नयी मंजरों की राह जगा भी दी तूने।
व नयी मंजरों की राह जगा भी दी तूने।
तू वो गुलिस्ताँ है
जो चमन में रौनक लाता है
तू वो जाम है
जो छोड़े न छूटता है
तेरी कसम
तेरी राहों में जां बिछा देंगे
पर क्या करें तेरी नजरें निगाहें
तो ढूंढती हैं हर रोज़ नया आशियाँ ।
आवाज़ दी तूने तो
आगाज़ बन गए सितारे,
सिद्दत की जो तूने
हम बन गए तुम्हारे ।
तूने छूआ तो सिहर सी गयी मैं
तूने देखा तो पिघल सी गयी मैं ।
हवाओं में भरी उड़ान तो परिंदे भी साथी बने
अब तो आकाश भी तेरे आने की राह तकता है
तुझे अपना ही हमकदम
अपने ही चमन का रौनक मान बैठा है ।
दो जहां के तख्तो-ताज का मालिक है तू,
ये रुपये-पैसे की नहीं , तेरी !
अपनी कमाई इबादत है ।
दो जहां के तख्तो-ताज का मालिक है तू,
ये रुपये-पैसे की नहीं , तेरी !
अपनी कमाई इबादत है ।
बहुत दिलनशीं शायरियाँ.......
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