Sunday, February 23, 2014

सिद्दत



सीने में उफनते सैलाब को
मंजर दे दिया
दहकते ख्वाबों को मैंने 
आशियाँ दे दिया


जो बुझ चुके थे,
न जलने के लिए कभी 
उनमें आशा की लौ लगा ही दी तूने
परचम को नया तसव्वुर
व नयी मंजरों की राह जगा भी दी तूने।


तू वो गुलिस्ताँ है 
जो चमन में रौनक लाता है
तू वो जाम है 
जो छोड़े न छूटता है 


तेरी कसम 
तेरी राहों में जां बिछा देंगे
पर क्या करें तेरी नजरें निगाहें 
तो ढूंढती हैं हर रोज़ नया आशियाँ ।


आवाज़ दी तूने तो 
आगाज़ बन गए सितारे,
सिद्दत की जो तूने 
हम  बन गए तुम्हारे ।


तूने छूआ तो सिहर सी गयी मैं
तूने देखा तो पिघल सी गयी मैं ।


हवाओं में भरी उड़ान तो परिंदे भी साथी बने
अब तो आकाश भी तेरे आने की राह तकता है
तुझे अपना ही हमकदम
अपने ही चमन का रौनक मान बैठा है ।


दो जहां के तख्तो-ताज का मालिक है तू,
ये रुपये-पैसे की नहीं , तेरी !
अपनी कमाई इबादत है ।






1 comment:

  1. बहुत दिलनशीं शायरियाँ.......

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