Friday, November 14, 2014

जज़्बात

[13/11 01:06] Jigyasa Singh: कुछ लब्ज़ नहीँ थे. जज़्बात बयां करने के लिये,
तूनेे जो दी दस्तक. हरक़तों का जलजला उमड पडा
[13/11 01:14] Jigyasa Singh: कुछ पास होके भी न था,कुछ दूर होके भी रग-रग में समाया था....
ये मेरी नजरों का भरम था, या तेरे संग ग़ुफ़्तगू के उन लम्हों का इल्म था
[13/11 01:19] Jigyasa Singh: हम जिनके जितने करीब थे,,,,फासले कदम दर कदम बढ़ते से गये...
वक़्त ने ली ऐसी करवट...हम कब "उन"ग़ैरों की कतार में शामिल हो गये
[13/11 01:22] Jigyasa Singh: अश्क गिरते है तो गिर जाने दो...इनका वजूद ही गिरने के लिए
जख्म आते हैं तो लग जाने दो....ये तो लगते ही भर जाने के लिए
[13/11 01:29] Jigyasa Singh: कुछ घाव नश्तर की तरह चुभते हैं, तीली की तरह सुलगते है
न जी भर के जलने ही देते हैं, न ही बुझ जाने की इजाज़त है
ये तआरुफ़ है उनका "ये आग का दरिया है.........
.....

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