Sunday, January 25, 2015

शुक्रिया


वक़्त रीत रहा है, तो आने वाले लम्हों की ?
तस्वीर ...कुछ् धुंधली ही सही ....रूबरू तो हो रही
स्याह रातों का वजूद नहीं,अश्कों का मोल नहीं
लब्जो की औकात नही ,नजर की कशिश नासमझ ही रही
जज़्बात तो बेपर्दा हुए,हम न समझ सके कभी
वो ताउम्र की ख्वाइश ,रफ़्ता रफ्ता ......
लबों ने तुम्हारी अजीज होने में ही .,दम तोड़ दी
शायद ,उसे भी मेरा संग रास न आया
न घर समझ सकी, न खुद को सम्हाल सकी
तेरे हर पैमाने से ही उतर गयी
अपनों ने भी हमारे रिश्ते  की ,खुली गिरहो पे सवाल उठा ही दिए
अब एहसास होता है ,अब ख़ामोशी ही मरहम है
जुबा औ जज़्बात ने साथ न दिया ....अब तक
कब तक इक. दूसरे पे ....... नही ......
नयी किरन से .....



नयी उम्मीद से.....।।
थामते है ,उन जाली बुनावटों की गिरह को
आपकी कही मानते हैं. ........
कभी कभी ख़ामोशी ........
सब बयां करती है........

जिन्दगी के इन आराम तलब बीते वक़्त के लिए
शुक्रिया...........
पिंजरे से दुनिया में लाने के लिए
शुक्रिया........
............।।।।।।

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