Friday, February 14, 2014

आरजू थी मेरी

तुम्हीं से साँसे जुड़ी जब
हवाओं ने करवट बदली
फिज़ाओं में रंग आया
आँखों ने सपने बुने
लफ्जों एहसास में जज़्ब हुए
चाहत ने रंगत दी हुस्न को
बेकरारियों ने तुझे समझने की हसरत दी
वो क्या था?
की जो एक मुस्कान ने
पलट कर रख दी
मेरी नब्ज़ की हलचल को
आरज़ू बदल गयी लम्हों में....

जुस्तजूँ थी तो बस तुम्हें टटोलने की
तुम्हारे निगेबान के अंजुमन को जानने की 
अनकही आँखों में डबडबाई शबनम की तपिश को
उस छांह को समझने की
उस आह को बुझने की
जिसे मेरी रूह ने महसूस किया था
बड़ी बेतरतीबी से उन पन्नों को पलटने की चाहत थी
जो बंद थे दरख्तों की दरारों में
उन्हें कुरेदने और इस मसोस को
तेरी आँखों से हटाने की आरज़ू थी मेरी
तमन्ना थी 
निशा की हर लौ से
तेरे चेहरे की खामोशी पर रंगत भरने की चाहत थी

करीब आते हैं आज इंसान हैसियत से
मैं तो कायल थी आपके जिंदगी जीने के नज़रिये से
चाहा तो बहुत कि तेरे पैमाने में ढाल जाऊँ
अश्क की तरह तेरे कलेजे में छुप जाऊँ
भरी बरसात के गरज की तरह तेरे सीने से लिपट जाऊँ
फूलों के गंध की तरह तुझमें ही खो जाऊँ
पर हो न सका
हर अंश में अपना नाम न कर पायी
विश्वास की एक थाप तेरी नज़रों में बना न पायी
फिर भी चाहत तो विश्वास करने का नाम है

वो क्या था
जो मुझे तुझमें घोले जा रहा था
अपना न रह पाने की कौन सी कुव्वत 
तुझमें सिमटती जा रही थी
न चाह के भी तेरे साये में सिमटती लिपटती जा रही थी
खुद से दूर तेरी ही आलिंगन पाश में
तेरी ही खुशबू में पगने को, ढलने को
तेरे ही साँचे में तपने को तैयार मैं
बिना तेरे दरवाजे पे दस्तक दिये 
मैं बाँहें पसारे बस तेरे इंतज़ार में...................


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