Wednesday, September 16, 2015

एक रैंक एक पेंशन : आवाम की अनुगूँज का शंखनाद

एक रैंक एक पेंशन : आवाम की अनुगूँज का शंखनाद 

चुना था तुझे बड़े भरोसे से 
भारत मां का तिलक जानकर 
कुछ बात थी तेरी आवाज़ में 
कि चट्टानों में भी दरार आ जाती 
लोगों ने कहा तानाशाह पर 
हमें अब भी भरोसा है 
कि वो घंटों निरंतर अचूक बोलने वाला 
इस दर्द की टीस को जरूर समझेगा
अपना राजधर्म जरूर निभायेगा। 

तेरी हर पुकार पर ये तत्पर 
हो नेपाल हो या यमन 
कहीं आपदा कहीं विपदा 
हर जगह ...... 
न दिन का चैन देखा 
न रात का सकून 
न आती गोलियां देखीं 
न देखे आते बॉम्ब 


कभी पिघलते ठिठुरते हाथों में 
बन्दूक थामे ऐ वतन  !
कभी भूख से अंतड़िया मुरमरायीं 
तब भी ऐ वतन !
कभी किसी अंग से रक्त का सैलाब उमड़ा 
तो कफ़न बांधकर ऐ वतन !
कभी किसी साथी को 
पीठ पर उठाकर ऐ वतन !
कभी खुद को ही पुल बनाकर 
ज़िंदगियाँ बचा कर ऐ वतन !
हिमालय की गोद में , बिना ऑक्सीजन मास्क के 
उड़ानें भरी तो ऐ वतन !
जान की बाज़ी लगा कर उड़ानें भरी 
तो ऐ वतन !
हवा में कब्रगाह बनी  
तब भी बस ऐ वतन !
सागर की अथाह लहरों में महीनों 
गश्त लगाया ऐ वतन !
हर खोते साथी के साथ करते मजबूत 
हौसला ऐ वतन !
आँखों में आये दरिया को 
दरख़्त बनाया ऐ वतन !


अपनी धरती को हमेशा माँ समझा और 
सबको उसका लाल ,
और हमने आपने क्या किया ?
उस जवान को सवालों और जवाबों की भट्ठी में झोंक दिया। 

क्या गुनाह है , अपनी माँ की रक्षा करना ?
बाकी सब ग्रुप 'अ' में समाहित ,
बाकी सब को एक सा सम्मान, एक सा अधिकार ,
एन एफ यु , बैकडोर ओ आर ओ पी ,
आखिर सैनिकों से ये अलगाव क्यों ?

साल दर साल 
हर पे - कमीशन में दुराव 
न कुछ बोलने का अधिकार 
और कुछ बोलें तो जलालत भरी नजरें झेलें 
क्या सैनिक बनना गुनाह है ?
सेना के मान सम्मान में हनन ,
क्या ये जायज़ है ?

हिकारत 
मौत का साया 
परिवार का दर्द 
और न जाने क्या क्या …
और जब रिटायर हों 
तो अपने जीवन यापन को तरसें !

प्रश्न है हम सबसे 
जिसने अपनी जिंदगी का सबसे बहुमूल्य वक़्त 
हमारी सुरक्षा में अर्पित कर दिया 
क्या हम उसे, उसके परिवार को एक सुखी 
और उचित जिंदगी नहीं दे सकते ?
सेना को जवान रखने के लिए,
युद्धोपयुक्त रखने के लिए 
जिन्हें सेवानिवृत्त कर दिया 
क्या उन्हें हम उनका अधिकार पेंशन नहीं दे सकते ?


आज वक़्त आ गया है कि 
आवाम अपनी अनुगूँज का शंखनाद करे 
हम सब चैन की सांस तब लेते हैं 
जब हममें से किसी का बेटा , किसी का पति 
किसी का पिता , किसी का भाई 
पुरे रात-दिन जागता है ,
वतन की रखवाली करता है। 

जरुरत है आवाम के आगाज़ की ,
किसी ने खिड़कियां बंद की हैं 
कहीं से हज़ारों दरवाज़े खुल जाते हैं 
आवाम की अनुगूंज का शंखनाद   । 






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