Monday, November 7, 2011

खो गए हैं रिश्ते नाते

बिक जाते हैं रिश्ते नाते
दुनियावी मोल में
तौलते हैं, परखते हैं तराजू पे
जाने क्यों वो अनमोल को
माप देना चाहते हैं
क्या ये साँसों का बंधन है
भावनाओं का ज्वार है जो
मूल्य के आधार पे गढ़ता है
बंधन, तर्क की आँखों से
तलाशता है आसरा , तब चढाते हैं
परवान रिश्ते
नहीं तो घोंट देता है, नोच देता है
आसरे को
क्योंकि उसे वो मान न मिला वो कर्ण न मिला
तब वो आरजू वो आशा की छावं न थी
बिक जाते हैं क्यों रिश्ते
यंत्रीकृत माहौल में
खो देते हैं पहचान
मिटा देते हैं आस विश्वास और नेह भी
खो गए हैं रिश्ते नाते
दुनियावी मोल में...

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