Thursday, May 24, 2012

तुम ही तुम

मेरी  आँखों में  हो तुम,
सांझ को पलकें बिछाए आस में ,
नब्ज की हर हलचल में हो तुम।
 
जो तुम न आये तो,
सांस की आह में ,
रवि की तपिश को भेज रही हूँ मैं,
तुम ही हो तन बदन में,
सावन की फुहार,
तुम ही हो मेरी हर मुस्कान,
बस तुम ही तुम हो, 
मेरी पहचान, कल्पना , आस....................

उनींदी पलकों से जागोगे सुबह तो,
अपने नजदीक ही बिखरा हुआ पाओगे मुझे ।
भीगे तौलिये की हर सलवट में,
 लिपटा  हुआ पाओगे मुझे  ।

कभी पेपर, कभी फाइल,
कभी मोज़े, कभी चाभी,
अपनी इन उलझनों में ,
उलझा हुआ पाओगे मुझे।

याद में मेरे कभी,
गर आँखें   नम  होंगी,
अपनी आँखों से टपकता हुआ पाओगे  मुझे।

तुम चाहोगे भूलना भी मुझे तो,
अपने सीने में सिसकता हुआ पाओगे मुझे ।






 


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