Wednesday, May 29, 2013

जिन आँखों पे मैं मरती हूँ


क्या बात  कहूं  उन आँखों के 
जिन आँखों पे मैं मरती हूँ 
वो आँखें झील सी आँखें हैं 
जिनमें डूब के रोज़  उबरती हूँ 
मुझे देखने के लिए उठते  हैं 
मिलते ही नजर वो झुकते हैं 
सारे जहाँ  में ऐसी आँखें नहीं'
जिन आँखों पे मैं मरती हूँ 
इन आँखों में कोई आंसू न आये कोई 
कभी कोई गम न पास आये कोई
सदा मुस्कुराते रहे ये आँखें  
हर  दम ये दुआ मैं करती हूँ  
क्या बात  कहूं  उन आँखों के 
जिन आँखों पे मैं मरती हूँ 


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