ये कैसे लोग ,
ये कैसी राजनीति ,
जनता से बैर ,
बस अपनों से प्रीति ।
कहते हैं खुद को जन-सेवक,
चुनाव के पहले करते हैं जनता को सलाम,
चुनाव के बाद जनता राह तकती इनकी सुबह शाम ।
ताज्जुब है मुझे कि,
चपरासी की नौकरी के लिए भी,
सर्टिफिकेट चाहिए मैट्रीक्युलेशन,
लेकिन राजनेता बनने के लिए ,
नहीं चाहिए कोई क्वॉलिफ़िकेशन ।
जिनके हाथों में जनता सौंपे,
देश की कमान,
जिनको लेने हैं फैसले देश के लिए,
उनका ही नहीं कोई ईमान ।
सड़कों पे चलें पत्थर और लाठियाँ,
संसद में चलें जूते और कूर्सियाँ,
कोई गरिमा नहीं कोई शर्म नहीं,
सारा देश देखे तो होता इन्हें फख्र,
इन करतूतों को बहादुरी समझ ।
याद आ गया एक पुराना शेर,
"बरबादे गुलिस्ताँ करने को
बस एक ही उल्लू काफी था,
हर डाल पे उल्लू बैठे हैं,
अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा ।"
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