Sunday, September 25, 2011

ख़ामोशी


ख़ामोशी वो है जो न शब्दों में बयां हो ...................
वो नजर की हया है ............
दिल में छुपा डर है ...........
चाह के भी न कहने की सजा है ...................
कहीं दर्द है ..............
तो कहीं आंसू .............
ये ख़ामोशी हमारी नहीं
वो जो हर रोज न चाह के भी ........
मजबूर है ..............
अपना सब कुछ लुटाने को
फिर भी तनहा है .................
कि ???????????????
काश कोई तो ,,,,,,,,,
कोई तो
हो
जो
मुझे समझे ..............
क्या मैं केवल ..............
अंकशायिनी हूँ ..................
वो पीड़ा की गठरी बनी .................
राह तकती है
मूक हो कर ......
निस्तब्ध नेत्रों की

ये ख़ामोशी
चित्कारती है ..........
कभी तो समझो हम बेजुबानों का दर्द
....................

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